कभी
कभी शक होता है कि "मुद्रा स्फीति" "जीडीपी" और "प्रति व्यक्ति आय" जैसे
भारी भरकम शब्दों से अमीरी और गरीबी का कोई सम्बन्ध है भी या नहीं.. खैर..
पड़ोस के मकान कि पतली दीवारों ने कल रात घर गृहस्थी कि कुछ तू-तू मैं-मैं
हमारे मकान से चुगल दीं, और हमारे मकान ने
हमसे.. सुबह पडोसी भैया और मैं अपनी गाड़ी धो रहे थे कि तभी हमने
पत्रकारिता वाले अंदाज में कुछ यूँ चर्चा छेड़ दी..! भाई साहब अब आप ही
बताइए सन 1970 मे घर की दीवारों की मोटाई 6 फुट तक हुआ करती थी जो की 2013
मे औसतन 6 इंच रह गयी है. दीवारों के पतला होने से मोहल्ले तो खूबसूरत हुए
लेकिन मकान चुगलखोर हो गए.. भाईसाहब इशारा समझ गए ठहाका मारकर बोले भाई
ज़माने के साथ कुछ और भी बदलना चाहिए, जैसे "मंगनी" में नई अंगूठी कि जगह
पुरानी मोबाइल सिम कि अदला बदली हो ताकि एक दूसरे को समझा जा सके.. हमने
कहा व्हाट एन आइडिया...!
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