Sunday 12 January 2014

अब ठलुआई भी खटकने लगी

कहीं सुना था लुच्चा शब्द की उत्पत्ति लोचन शब्द से हुई है जो की आँखों का पर्यायवाची है..किसी को ३ सेकण्ड तक देखना सामान्य बात है लेकिन एक बार मैं इससे ज्यादा सेकण्ड तक देखना घूरना कहलाता है.. जब कोई आदमी किसी महिला को "घूरता" है तो उसे "लुच्चा" और अगर वो बेरोजगार भी है तो उसके नाम के साथ "लफंगा" भी जोड़ दिया जाता था.. किसी ज़माने मैं लुच्चे और लफंगे गलियों और नुक्कड़ों की शान हुआ करते थे. इलाके की पान और चाय की दुकानों पर इनसे जहाँ रोनक बनी रहती थी वहीँ होलिका दहन, मटकी फोड़ प्रतियोगिता और चन्दा इकट्ठा करने की जिम्मेदारी भी इन्ही के कन्धों पर हुआ करती थी. मोहल्ले के अघोषित सुरक्षा गार्ड भी यही हुआ करते थे और कई बार हंगामे की वजह भी.. लेकिन लगातार बन रहे इन कड़े कानूनों की वजह से यह तबका लुप्त होने की कगार पर है.. सुना है घूरने वाले को जमानत भी नसीब न होगी.. सरकार की आँखों में इनका हुनर तो पहले से खटकता था अब ठलुआई भी खटकने लगी..

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