शिक्षा प्रथम अधिकार है और अगर नहीं है तो कर दिया जाना चाहिए, वैसे अधिकार
तो बहुत से प्राप्त हैं द्वितीय, तृतीय और भी दो चार,, न्याय का अधिकार भी
है,, जमीन गिरवी रखवाकर सही शिक्षा न देना भी अन्याय ही है और योग्य
शिक्षित को रोजगार न मिलना भी अन्याय है,, मतलब न शिक्षा है न न्याय है, और
जहाँ अन्याय है वहाँ बाकी के अधिकार मिल भी जायें तो क्या,,? हर शिक्षण
सत्र शुरू होते ही शिक्षा माफियाओं के गुर्गे गाओं, कस्बों, बीहड़ों में
असामियों कि खोज में निकल पड़ते हैं,, MBA, MCA, BE, जैसे बड़े
बड़े अंग्रेजी नाम बताते हैं IIT, IIM पैकेज बताते हैं और मुर्गा पकड़ लाते
हैं 2-4 साल लूटते हैं फिर खुला छोड़ देते हैं,, ये किसान को ट्रेक्टर
बेचने जैसा है, एजेंट को बस अपने टारगेट से मतलब फिर भले ही किसान
आत्महत्या कर ले उसकी किश्त डूब जाये या ट्रेक्टर बैंक में धरा नजर आये,
एजेंट को सिर्फ अपने कमीशन से मतलब, यकीन न हो तो आंकड़े टटोले जा सकते
हैं,, शिक्षा और रोजगार के बीच एक बड़ा निर्जन, निर्जल दर्रा है, गरीब छात्र
गरजू की जमीन नजर आते हैं और महाविद्यालय, यूनिवर्सिटी संचालक निर्दयी
जमींदार,,!
DD 1 पर बिहार (मिथिलांचल) के शिक्षा स्तर को लेकर एक डिबेट चल रहा है,, करीब 200 कि संख्या में उपस्थित छात्र, शिक्षक, प्राध्यापक, और निदेशक आदि शिक्षा जगत में फैले भ्रस्टाचार पर अपने अपने विचार व्यक्त कर रहे है शिक्षा के स्तर से लेकर शिक्षा माफिया, बैंकों में गिरवी रखी जमीनें और प्रतिभा पलायन, छात्र आत्महत्या, किसान आत्महत्या, और भी कई ज्वलंत विषयों पर कड़ी टिप्पणियां सुनने को मिली, बिहार का गौरवमयी इतिहास यहाँ के छात्रों को चिढाने लगा है वो कहते हैं क़ी ये वो वक़्त नहीं है जब शिक्षित होकर एक कमरे मैं दुबक कर कालजयी रचनायें लिखी जायें जबकि परिवार भूख से मर रहा हो, पिछले सत्र मैं ख़ाली रही 50 प्रतिशत सीटें और बंद हुए महाविद्यालयों कि संख्या एक बड़े बदलाव की तरफ इशारा कर रही हैं,,!
DD 1 पर बिहार (मिथिलांचल) के शिक्षा स्तर को लेकर एक डिबेट चल रहा है,, करीब 200 कि संख्या में उपस्थित छात्र, शिक्षक, प्राध्यापक, और निदेशक आदि शिक्षा जगत में फैले भ्रस्टाचार पर अपने अपने विचार व्यक्त कर रहे है शिक्षा के स्तर से लेकर शिक्षा माफिया, बैंकों में गिरवी रखी जमीनें और प्रतिभा पलायन, छात्र आत्महत्या, किसान आत्महत्या, और भी कई ज्वलंत विषयों पर कड़ी टिप्पणियां सुनने को मिली, बिहार का गौरवमयी इतिहास यहाँ के छात्रों को चिढाने लगा है वो कहते हैं क़ी ये वो वक़्त नहीं है जब शिक्षित होकर एक कमरे मैं दुबक कर कालजयी रचनायें लिखी जायें जबकि परिवार भूख से मर रहा हो, पिछले सत्र मैं ख़ाली रही 50 प्रतिशत सीटें और बंद हुए महाविद्यालयों कि संख्या एक बड़े बदलाव की तरफ इशारा कर रही हैं,,!
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