Sunday 12 January 2014

इश्क का कोई सिद्धांत नहीं होता

इश्क का कोई सिद्धांत नहीं होता, न ही हो सकता है,.. यह कब हो सकता है कब नहीं, कब ज्यादा वाला होता है कब कम वाला.. इसका कोई गणित नहीं है.. होने पर आये तो उम्र, रूप-रंग, धन- दौलत, राजा- फ़कीर कुछ न देखे.. बिगड़ने पर आये तो एक छींक से बिगड़ जाए.. इश्क सपने दिखाता है..उम्मीदें जगा देता है..यही उम्मीदें पहले जीने का सहारा बनती है, फिर जिन्दगी बन जाती है और कभी कभी जिद भी.. लड़कपन में पैदा हुआ जोया के प्रति स्वाभाविक आकर्षण कुंदन के मन में गहरे तक जगह बना लेता है..पंद्रह थप्पड़ों के बाद एक दिलकश इकरार की ऊष्मा आकर्षण को ठोस इश्क में बदल देती है फिर यहीं से शुरू होता है उम्मीद का सिलसिला जो कुंदन की मौत पर जाकर ख़त्म होता है.. पहला प्यार, सच्चा प्यार, अच्छा प्यार, उचित प्यार और अनुचित प्यार जैसे कई प्रकार हैं प्यार के.. लेकिन बिडम्बना यह है, कि ये प्रकार प्यार की प्रारंभिक स्थिति में दिखाई नहीं देते और जब ये अपने असली रूप में आता हैं बहुत देर हो चुकी होती है. बचपन की दोस्ती मुरारी और बिंदिया ने बखूबी निभाई और जोया अपने सपनो से मजबूर नजर आई. कुंदन आखिरी दम तक दोस्ती, मोहब्बत निभाता रहा, सही किये पर भी माफ़ी मांगता रहा और गलत पर भी.. मोहब्बत की जंग में योद्धा की तरह लड़ा और वीरगति को प्राप्त हुआ, जो चाहता गया वो पाता गया. लड़ता, जीतता और दान कर देता.. फिर चाहे वो प्यार हो या सत्ता. वो बना ही इसीलिए था "काशी का पंडित था, और वो भी काला" ऐसा "रांझणा" जिसके लिए हीर बनी ही नहीं थी..!
मनमोहक गीत-संगीत.. वजनदार, सार्थक संवाद और दिलकश अदाकारी.. ये फिल्म घर तक आपके साथ आएगी..!

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