Sunday 12 January 2014

हर "चौबेपुर" और "बलिहार" के बीच मैं एक नदी होती है


हर "चौबेपुर" और "बलिहार" के बीच मैं एक नदी होती है.. उम्मीद की एक नाव होती है लेकिन उसमें आशंका का छोटा सा छेद भी होता है, छेद से रिसकर पानी अन्दर आता है और गुंजा के पाँव के महावर से चन्दन के पाँव भी रंग देता है.. लाल रंग पलभर के लिए सम्बन्ध बना देता है विदाई के दुःख को कुछ देर के लिए मिलन के रंग में रंग देता है.. चन्दन को शरमाते हुए देखकर गुंजा कहती है.. एक दिन तो रंगना ही है फिर लजाते क्यू हो.? अभिव्यक्ति के अनगिनत सटीक तरीके हैं सीखने के लिए.. फिल्म आज भी सुपर हिट है "नदिया के पार".

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जनसंपर्क अधिकारियों अब ईमेल छोड़ो, मुनादी करो।

इस हफ्ते 4,000 से अधिक भारतीय पत्रकार और जनसंपर्क अधिकारी मुनादी में रजिस्ट्रेशन कर चुके हैं । तो आप किस बात का इंतज़ार कर रहे हैं ?  बाउंस...